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क्या फर्क पड़ता हैं गलती तेरी थी या मेरी ?
जो हुवा सो हुवा न कोई गम हैं पछतावा
जानेवाले वापस नहीं आते यार कभी
पागल मन को समझाया सौ दफा
क्या फर्क पड़ता हैं हम जिए या मरे
तुझसे नफरत करे या मोहब्बत
तू अब मेरी हो नहीं सकती कभी
कितनी बार समझाया यार तुझे
क्या फर्क पड़ता हैं तुम अपने हो पराये
तब भी चाहते थे तुम्हे और आज भी उतनाही
क्यों ? कैसे और कब तक ? बता नही सकते
ना हटा सकते हैं जिंदगी से तेरे सपने तेरे अरमान
क्या फर्क पड़ता हैं भाई तुम साथ नही हो
अभी भी क्यों लगता ह
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