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तुम हो सो वो है वगरना है खुदा कुछ भी नहीं,
जो तुम्हे हम छोड़ दें उसने रचा कुछ भी नहीं।
दोस्त मेरे पूछते थे, 'क्या हुआ? कैसे हुआ?'
चाहता तो था कि कह दूं पर कहा कुछ भी नहीं।
अब वो मेरी दोस्त है मैं खुश बहुत हूँ देखकर,
हाँ वही मुझ से कहा जिस को गया कुछ भी नहीं।
'कौन है वो खुशनसीब' उसने मुझे जब ये कहा,
मुस्कुराया हाँ मगर मैंने, कहा कुछ भी नहीं।
मार डाला है मुसन्निफ़ तालियों के वास्ते,
इस कहानी में चला किरदार का कुछ भी नहीं।
तुम समझते हो नहीं क्यों वो नहीं अब आएंगे
काम उनका झूठ कहने के सिवा कुछ भी नहीं
रौशनी तो है धमाका भी इसी के पास है,
और इस दुनिया में आतिश सा बना कुछ भी नहीं।
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