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अभिलाषाओं-आकांक्षाओं के
कितने भूधर
लेकर अपने हिय के भीतर
मनुज लाँघते कितने अंबर
कितने सरित-गिरी और गह्वर
कितने कंटक-सुमन और शर
धूप-घाम-घन पानी पत्थर
जल-थल-नभ सब छू कर
मनुज लाँघते कितने अँबर
कितने सागर कितने भँवर
मनुज ठानते कितनी टक्कर..
~अक्षिणी
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