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पी न पाऊंगा सहज
नित कुंठाओं का गरल
तुझसा नहीं सहिष्णु मैं
हे नीलकंठ! मुझे रहने दे सरल
1) नीलकंठ - शिव जी का एक नाम 2) गरल - ज़हर 3) कुंठा - निराशा, परेशानी 4) सहिष्णु - सहनशील
वश में न होंगे मुझसे
छल-कपट के विषैले सर्प
इस माया के जाल से
भोले, बस होने दे विरक्त
5) विरक्त - परे 6) विषैले - ज़हरीले
जो दिखाए दुःख, पाप, त्रास
उस दिव्यदृष्टि का क्या करूँ
देख कर जग का अँधेरा
हृदय तमस से क्यों भरूँ
7) त्रास - कष्ट 8) तमस - अँधेरा
नष्ट करने इस भंवर को
तांडव तुझसा कर सकूं
मुझमे नहीं शक्ति वो
हे रूद्र, जो मैं लड सकूं
9) रूद्र - शिव जी का एक नाम
बैठ कर कैलाश पर
मैं भी लगाऊं ध्यान जो
शीतल करे हिमालय सा
मेरे शंकर, ऐसा ज्ञान दो!
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