
पर्वत सी अड़ जाती
जब आती अपनी हठ पर
कभी अडिग शैलपुत्री हूँ मैं
सूर्य सम ज्वाला तप की
प्रज्वलित मेरी साँसों में
कभी तपस्विनी ब्रह्मचारिणी हूँ मैं
नेत्र चंचल, शीतल शशि मुखड़ा
माँ कहती मैं चाँद का टुकड़ा
कभी चंद्रघंटा मनोहारी हूँ मैं
सुख-समृद्धि, करुणा अपार
मैं ही रचती अपना संसार
कभी कूष्मांडा शुभदायी हूँ मैं
विपदा जब भी आन पड़ी
संतान समक्ष मैं ढाल बनी
कभी स्कंदमाता सी माई हूँ मैं
मात-पिता ईश मेरे
घर-संसार मोक्ष सभी
कभी कात्यायनी मोक्षदायी हूँ मैं
अपने भोले की प्रियतमा
दुःख सुख में संग सदा
कभी संगिनी महागौरी हूँ मैं
अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा
साध रही मैं सब सिद्धियां
कभी सिद्धिदात्री विद्यादायी हूँ मैं
जग में जब-जब हो अन्याय
दुर्गा सी गरजी
काली सी बरसी हूँ मैं
नवरात्रि के रंग समेटे
नव देवी के रूप लिए
भारत की पुत्री हूँ मैं
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments