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जब हो प्रबल तुम्हारे ज्ञान का वेग
और उड़ा ले जाए, जात-पात की रेत
तब कहना तुम स्वतंत्र हो
जब कोई गाये भजन,अज़ान, गुरबाणी
और लगे एक सी सभी की वाणी
तब कहना तुम स्वतंत्र हो
जब भय-भूख न सताए घर-घर
और नींद आये अपनी छत पर
तब कहना तुम स्वतंत्र हो
जब कोई निर्भया निकले पथ पर
और हंसती खेलती पहुंचे अपने घर
तब कहना तुम स्वतंत्र हो
जब नेत्र देखे कोई अन्याय
ह्रदय हो कर निडर, आवाज़ उठाये
तब कहना तुम स्वतंत्र हो
जब आईना तुमको छवि दिखलाये
और नैन तुम्हारे न लजाये
तब कहना तुम स्वतंत्र हो
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