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अविश्वास से उपजा रात दिन की सीमा से परे चला , सीनों मे पला और अंधविश्वास का रहा पोषक हूं मै
हाँ डर हूं मै
चुपके से दबे पैर सोच मे आता हूं
फिर अपनी शाखाए फैलता हूं
मेरी आहट से हृदय कॉप उठता है
हाथ थोड़े थर्रा से
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