अंतिम सफर's image
Share1 Bookmarks 0 Reads2 Likes
सुलझाने कि जिद में थोड़ी और उलझ सी जाती है
दिन महीने साल मे ये जिंदगी थोड़ी बीती सी जाती है
इक आहट सी लगी रहती है बीती किसी श्रेष्ठता की
बस उसी को लिए इंतजार रहता है हर शाम को सुबह का और हर सुबह को शाम का
इसी मैं जिंदगी बीती सी जाती है

फिर मुझे लगता है इस भागी सी जिंदगी मे एक ठहराव जरूरी है
पर मैं तो वही ठहरा हूं ना, जहां खो दिया था खुद को कई बरस पहले
मुझे अब वो दिन, बरस याद नहीं है
हाँ पर जब कभी आंखे मूंदता तो अक्सर दिखती है
एक अंधेरी वीरान सड़क ,लिए चौराहे एक के बाद एक
दिशाविहीन पाकर जब बैठता हुं किसी चौराहे पर
तो आभास होता जैसे हो कॉलेज का पहला दिन और चौराहा
पीछे देखता पर लगता है, बीती सड़कों पर दीए जलाए बड़ी दूर से आया हूं
किन्ही पथिको के लिए इक राह भी बनाकर आया हूं
पर जैसे ही दीए की रोशनी, गर्माहट मुझे तक पहुंचने को होती है
आगे पसरा अंधेरा उसे खा जाता है|

मैं फिर चौराहे पर खड़ा होता हूं , अबकी बार किसी जुगनू की तलाश में
मै अब अपनी हड्डियो को और नहीं जला सकता
जलाऊं भी तो कहां पहुंचने क

No posts

Comments

No posts

No posts

No posts

No posts